राजस्थान में प्रशासनिक सेवा (RAS) से प्रमोशन पाकर IAS बने अधिकारी पिछले तीन महीनों से अपने पुराने पदों पर ही काम कर रहे हैं, जबकि RPS से IPS बने पांच अधिकारियों को नई पोस्टिंग मिल चुकी है। इससे प्रशासन के भीतर नाराजगी बढ़ रही है। अधिकारी खुलकर बोलने से बच रहे हैं, लेकिन RAS एसोसिएशन ने इसे साफ तौर पर भेदभाव बताया है।
2024 के लिए आईएएस पदोन्नति की रिक्तियों के तहत 16 RAS अधिकारियों और अन्य सेवाओं के 4 अधिकारियों को प्रमोशन मिला था। हैरानी की बात यह है कि एक तरफ प्रदेश IAS अधिकारियों की कमी से जूझ रहा है और 45 विभागों का अतिरिक्त प्रभार दूसरे अधिकारी संभाल रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ प्रमोट हो चुके अधिकारियों को नई पोस्टिंग क्यों नहीं दी जा रही? इसका असर सरकार के कामकाज पर पड़ रहा है।
क्या है पूरा मामला?
30 जून 2025 को केंद्रीय कार्मिक विभाग ने 20 अधिकारियों को IAS बनाने की अधिसूचना जारी की थी, लेकिन अक्टूबर आने के बावजूद ये सभी अपने पुराने पदों पर ही तैनात हैं। वहीं दूसरी ओर, 2 सितंबर को IPS बने पांच अधिकारियों को 23 सितंबर तक नई पोस्टिंग मिल गई।
पोस्टिंग में देरी की वजह क्या है?
विशेषज्ञों और हलकों के मुताबिक, इसकी तीन प्रमुख वजहें हो सकती हैं:
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सरकारी विवेक: राज्य सरकारें अपने हिसाब से अधिकारियों की तैनाती करती हैं। माना जा रहा है कि मौजूदा सरकार में डायरेक्ट भर्ती IAS अधिकारियों को ज्यादा तरजीह दी जा रही है। मुख्यमंत्री कार्यालय समेत अहम पदों पर ज्यादातर डायरेक्ट IAS ही हैं। प्रदेश के 41 जिलों में से सिर्फ 12 जिलों की कमान प्रमोटी अधिकारियों के हाथ में है, जबकि पिछली सरकारों में यह संख्या 17-18 थी।
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सिफारिश पर प्रमोशन: प्रमोटी अधिकारियों का चयन राज्य सरकार की सिफारिश पर होता है, इसलिए उनकी पोस्टिंग भी सरकार के विवेक पर निर्भर करती है। इसे नियमों का उल्लंघन नहीं माना जाता।
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भ्रष्टाचार के आरोप: पिछले कुछ सालों में कुछ प्रमोटी अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। सरकार अपनी छवि को लेकर सतर्क है और ऐसे में संवेदनशील पदों पर तैनाती में सावधानी बरत रही है।
असर: 45 विभाग प्रभावित, जनता को उठाना पड़ रहा खामियाजा
प्रदेश में अधिकारियों की कमी का सीधा असर प्रशासनिक कामकाज पर पड़ रहा है। करीब 45 विभागों के प्रमुख पद खाली हैं और उनका अतिरिक्त प्रभार दूसरे अधिकारी संभाल रहे हैं। इससे रूटीन का काम भी रुक रहा है और जनता को परेशानी उठानी पड़ रही है।
उदाहरण के लिए, पंचायती राज विभाग, जिसके तहत प्रदेश की सभी ग्राम पंचायतें आती हैं, उसका अपना कोई पूर्णकालीन सचिव नहीं है। इसी तरह, किसानों से जुड़े राजफेड विभाग का प्रभार मुख्य सचिव के पास है और सूचना एवं जनसंपर्क विभाग का प्रभार मुख्यमंत्री के एक सचिव के पास। इससे योजनाओं के क्रियान्वयन में देरी हो रही है।
क्या प्रमोटी अधिकारी कर सकते हैं कोई कार्रवाई?
हर अधिकारी की इच्छा फील्ड में जिलाधिकारी या एसपी जैसे पद पर काम करने की होती है। लेकिन कानूनन, सरकार के पास अधिकारियों को कहीं भी तैनात करने का अधिकार है। इसे चुनौती देना मुश्किल है, क्योंकि सचिवालय या पुलिस मुख्यालय में भी समकक्ष पद होते हैं।
पूर्व सीएम और एसोसिएशन भी उठा चुके हैं आवाज
इस मामले पर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी सवाल उठाए थे। उन्होंने जून में कहा था कि प्रमोशन पाकर भी अधिकारी पोस्टिंग का इंतजार कर रहे हैं, जिससे प्रशासन प्रभावित हो रहा है। वहीं, RAS एसोसिएशन के अध्यक्ष महावीर खराड़ी का कहना है कि सरकार को तैनाती का अधिकार है, लेकिन प्रमोटी अधिकारियों के साथ भेदभाव ठीक नहीं है। उनका तर्क है कि प्रमोटी अधिकारियों के पास फील्ड का ज्यादा अनुभव होता है और उन्हें जिलाधिकारी जैसे महत्वपूर्ण पदों पर तैनात किया जाना चाहिए।