Uproar Over Acting Chief Secretary and DGP Appointments in Himachal Pradesh

हिमाचल प्रदेश में मुख्य सचिव (सीएस) और पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के पदों पर कार्यवाहक अधिकारियों की नियुक्ति को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है। यह पहली बार हुआ है जब प्रदेश की नौकरशाही और पुलिस के शीर्ष पदों पर स्थायी नियुक्ति न करके अतिरिक्त कार्यभार दिया गया है।

मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार ने पुलिस महानिदेशक के बाद अब मुख्य सचिव का पद भी कार्यवाहक के तौर पर संभालने का फैसला किया है। मुख्य सचिव का अतिरिक्त कार्यभार पूर्व में इस पद पर रह चुके और अतिरिक्त मुख्य सचिव (टाउन एंड कंट्री प्लानिंग) संजय गुप्ता को सौंपा गया है। वहीं, डीजीपी का पद पिछले पांच महीनों से कार्यवाहक के पास ही है।

इस फैसले पर सेवानिवृत्त ब्यूरोक्रेट्स ने हैरानी जताई है। उनका कहना है कि पहले कभी भी किसी मुख्य सचिव या डीजीपी के रिटायरमेंट के बाद नए अधिकारी को स्थायी तौर पर न लगाकर अतिरिक्त चार्ज नहीं दिया गया।

वहीं, भाजपा ने भी सरकार के इस कदम पर सवाल उठाए हैं। पार्टी के मुख्य प्रवक्ता और पूर्व विधायक राजेंद्र राणा ने आरोप लगाया कि सरकार अधिकारियों पर मनमाने ढंग से काम करवाने का दबाव बना रही है। उन्होंने कहा कि जो अधिकारी सरकार के हिसाब से चलेंगे, उनका पद सुरक्षित रहेगा और जो गलत आदेश मानने से इनकार करेंगे, उनसे अतिरिक्त चार्ज भी छीन लिया जाएगा।

पूर्व मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना के 30 सितंबर को रिटायरमेंट के बाद संजय गुप्ता को यह अतिरिक्त जिम्मेदारी दी गई है। गौरतलब है कि दो साल पहले सत्ता में आने के बाद सीएम सुक्खू ने तीन वरिष्ठ अधिकारियों की वरिष्ठता को नजरअंदाज करते हुए सक्सेना को मुख्य सचिव बनाया था। सक्सेना को केंद्र सरकार ने छह महीने का सेवा विस्तार भी दिया था।

इसी तरह, पुलिस महानिदेशक के पद पर भी स्थायी नियुक्ति नहीं की गई है। एक जून को 1993 बैच के आईपीएस अधिकारी अशोक तिवारी को डीजीपी का अतिरिक्त कार्यभार दिया गया था। इस बीच, प्रदेश के सबसे वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी श्याम भगत नेगी केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटे थे और उनके डीजीपी बनने की चर्चाएं थीं। हालांकि, लौटने के दो महीने से अधिक समय बीत जाने के बाद भी न तो उनकी तैनाती हुई है और न ही किसी अन्य अधिकारी को स्थायी रूप से डीजीपी बनाया गया है।

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