अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस: जानिए इन नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं के बारे में
आज अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के मौके पर जानते हैं शांति के उन पैरोकारों के बारे में, जिन्हें नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
1. निहोन हिदांक्यो (2024)
यह जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु हमलों के बचे लोगों (हिबाकुशा) का एक संगठन है। इसकी स्थापना 1956 में हुई थी। इसका मकसद परमाणु हमलों के पीड़ितों को बेहतर सहायता दिलाना और दुनिया को परमाणु हथियारों के विनाशकारी असर के बारे में आगाह करना है।
93 साल के तेरुमी तनाका इस संगठन के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। वे बताते हैं, “9 अगस्त 1945 को नागासाकी पर परमाणु बम गिरा था, तब मैं 13 साल का था। चारों तरफ काला धुआं और मलबा ही मलबा था। मलबे के बीच इंसानी शव बिखरे पड़े थे। मैं अपने परिवार को ढूंढ रहा था। कई लोग बुरी तरह जल चुके थे, लेकिन उनकी सांसें चल रही थीं। मगर उन्हें देखने वाला कोई नहीं था।”
2. नर्गिस मोहम्मदी (2023)
ईरान की मानवाधिकार कार्यकर्ता नर्गिस मोहम्मदी को यह पुरस्कार जेल में रहते हुए मिला। वे 20 साल से भी ज्यादा समय से ईरान में महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठा रही हैं। उन्होंने मौत की सजा और जेल में यातना के खिलाफ भी मुहिम चलाई।
उन्हें 13 बार गिरफ्तार किया गया और 31 साल की जेल की सजा सुनाई गई। 2022 में महसा अमीनी की हिरासत में मौत के बाद देशभर में हुए विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व उन्होंने जेल से ही किया।
3. मारिया रेस्सा और दिमित्री मुरातोव (2021)
फिलीपींस की पत्रकार मारिया रेस्सा और रूस के पत्रकार दिमित्री मुरातोव को अभिव्यक्ति की आजादी के लिए किए गए काम के लिए यह पुरस्कार दिया गया।
मारिया रेस्सा ने रैपलर नामक समाचार वेबसाइट शुरू की और राष्ट्रपति के विवादित अभियानों पर खबरें छापीं। दिमित्री मुरातोव नोवाया गजेता अखबार के संपादक हैं, जो सरकारी भ्रष्टाचार और मानवाधिकार उल्लंघनों की खबरें छापता रहा है।
4. डेनिस मुकवेगी और नादिया मुराद (2018)
कांगो के डॉक्टर डेनिस मुकवेगी और इराक की नादिया मुराद को युद्धक्षेत्र में यौन हिंसा रोकने के लिए काम करने पर यह पुरस्कार मिला।
डॉ. मुकवेगी ने पन्जी अस्पताल बनाया, जहाँ उन्होंने यौन हिंसा की शिकार हजारों महिलाओं का इलाज किया। नादिया मुराद यजीदी समुदाय से हैं, जिन्हें आईएस आतंकियों ने सेक्स स्लेव बनाया था। वे भागने में सफल रहीं और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी आपबीती सुनाकर पीड़ितों की आवाज बनीं।
5. कैलाश सत्यार्थी और मलाला युसूफजई (2014)
भारत के कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की मलाला युसूफजई को बच्चों और युवाओं के दमन के खिलाफ और उनकी शिक्षा के लिए आवाज उठाने पर सम्मानित किया गया।
कैलाश सत्यार्थी बच्चों को बाल मजदूरी और गुलामी से मुक्त कराने के लिए काम करते हैं। मलाला तब चर्चा में आईं जब तालिबान ने लड़कियों की शिक्षा के लिए आवाज उठाने पर उन पर गोली चला दी। वे बच गईं और दुनिया भर में बच्चों की शिक्षा की वकील बनीं।